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आ नो॑ नि॒युद्भिः॑ श॒तिनी॑भिरध्व॒रꣳ स॑ह॒स्रिणी॑भि॒रुप॑ याहि य॒ज्ञम्। वायो॑ऽ अ॒स्मिन्त्सव॑ने मादयस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। श॒तिनी॑भिः। अ॒ध्व॒रम्। स॒ह॒स्रिणी॑भिः। उप॑। या॒हि॒। य॒ज्ञम्। वायो॒ इति॒ वायो॑। अ॒स्मिन्। सव॑ने। मा॒द॒य॒स्व॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिभि॒रिति॑ स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) वायु के तुल्य बलवान् विद्वन् ! जैसे वायु (नियुद्भिः) निश्चित मिली वा पृथक् जाने-आने रूप (शतिनीभिः) बहुत कर्मोंवाली (सहस्रिणीभिः) बहुत वेगोंवाली गतियों से (अस्मिन्) इस (सवने) उत्पत्ति के आधार जगत् में (नः) हमारे (अध्वरम्) न बिगाड़ने योग्य (यज्ञम्) सङ्गति के योग्य व्यवहार को (उप) निकट प्राप्त होता है, वैसे आप (आयाहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये (मादयस्व) और आनन्दित कीजिये। हे विद्वानो ! (यूयम्) आप लोग इस विद्या से (स्वस्तिभिः) सुखों के साथ (नः) हम लोगों की (सदा) सब काल में (पात) रक्षा कीजिये ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् लोग, जैसे वायु विविध प्रकार की चालों से सब पदार्थों को पुष्ट करते हैं, वैसे ही अच्छी शिक्षा से सब को पुष्ट करें ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) (नः) अस्माकम् (नियुद्भिः) निश्चितैर्मिश्रणामिश्रणैर्गमनागमनैः (शतिनीभिः) शतं बहूनि कर्माणि विद्यन्ते यासु ताभिः (अध्वरम्) अहिंसनीयम् (सहस्रिणीभिः) सहस्राण्यसंख्या वेगा विद्यन्ते यासु गतिषु ताभिः (उप) (याहि) प्राप्नुहि (यज्ञम्) सङ्गगन्तव्यं व्यवहारम् (वायो) वायुरिव बलवन् विद्वन् ! (अस्मिन्) (सवने) उत्पत्त्यधिकरणे जगति (मादयस्व) आनन्दयस्व (यूयम्) (पात) रक्षत (स्वस्तिभिः) सुखैः सह (सदा) सर्वस्मिन् काले (नः) अस्मान् ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वायो ! यथा वायुर्नियुद्भिश्शतिनीभिः सहस्रिणीभिर्गतिभिरस्मिन् सवने नोऽध्वरं यज्ञमुपगच्छति तथा त्वमेतमायाहि मादयस्व। हे विद्वांसो ! यूयमेतद्विद्यया स्वस्तिभिर्नः सदा पात ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो यथा वायवो विविधाभिर्गतिभिः सर्वान् पुष्णन्ति तथैव सुशिक्षया सर्वान् पोषयन्तु ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू विविध प्रकारे सर्व पदार्थांना बलवान करतो, तसेच विद्वान लोकांनी चांगल्या शिक्षणाने सर्वांना बलवान करावे.